Sunday, June 17, 2012

इच्छाओ के कबूतर




गर आज किसी दिवार पे बैठा है
दुनिया बदलती देखता है 
तो मन उसका  भी 
हज़ार खवाब बुनता है 
है कबूतर मन 
की मर्ज़ी पे उडाता है 
इच्छाए दाना 
ये कबूतर मन दाना चुनता है 
हज़ार खवाब बुनता है
: शशिप्रकाश सैनी 

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