नव भाचित्रक
Monday, December 3, 2012
Ek ye jo roz Ghodi chadhe
एक ये जो रोज घोड़ी चढ़े
एक हम की
गधी भी न नसीब हमको
वो गुड जैसे मक्खियां भिनभिनाती है
और हम सच जो बोल गए
कोई रखे भी ना करीब हमको
: शशिप्रकाश सैनी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment