Wednesday, August 28, 2013

श्री कृष्ण जन्माष्टमी मैनेजमेंट हॉस्टल वाली



कान्हा की सुन बासुरी, राधा दौड़ीं आए
प्रेम रहे निर्छल जहाँ, राधा कृष्ण हो जाए

: शशिप्रकाश सैनी


//मेरा पहला काव्य संग्रह
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यहाँ Free ebook में उपलब्ध 

Monday, August 26, 2013

Youngest tourist in Banaras



नन्हा बालक पीठ पे, देखन आया काशी 
परिधि उम्र भी पीछे रहती, जो पास बुलाए काशी 



Friday, August 9, 2013

बनारस और उसके स्वाद



स्वाद की बात हो और बनारस का जिक्र ना आए ! ये हो सकता हैं भला, चलिए बनारस और उसके स्वादों से आपकी मुलाकात करा देते हैं |


यहाँ स्वाद है, रास्तों का, गलियों का, गंगा का 
घाट का भी और चाट का भी,
कुल मिला के बनारस स्वादों से भरपूर है |


शुरू कहा से करे, 
बनारस हिंदू युनिवर्सिटी के मेन गेट से करते हैं, आखिर यहाँ दो चीजे आपको 24 घंटे मिलेगी
चाय और बन मलाई, सुनने में कुछ खास नहीं लगती,
पर युनिवर्सिटी के स्टुडेंट्स के लिए अमृत से कम नहीं हैं, खास कर देर रात को जब कुछ नहीं मिलता |


अब थोड़ा आगे बढते हैं, अस्सी घाट स्टुडेंट्स का अड्डा हैं
हर शाम यहाँ आपको भीड़ मिलेगी, भौकाल चाट वाले की खूब डिमांड है यहाँ |


चलिए आपको कचौरी गली ले चलते हैं, सुबह आठ से दस बस यही वक्त है इसका, लेट हो गए तो कुछ नहीं मिलेगा | गिनती की तीन दुकाने हैं, पर जो स्वाद आपको यहाँ मिलेगा कही न मिलेगा और इनकी जलेबी का तो क्या कहना |


घड़ी बता रही हैं की दस से उपर हो चला हैं, चलिए केदार घाट चलते हैं |
बस केदार घाट के उपर ही है ये दुकान, श्री राम स्वीट्स
गजब का गजक बनाते हैं, काजू गजक खाने के लिए, कम से कम आपको दो किलोमीटर चलना पडेगा, चाहें घाट के रास्ते या गली के रास्ते, आप ना चल पायेंगे कहिये तो हम ले आए हर दूसरे तीसरे दिन पहुच जाते हैं |
अब कहा चला याए, लस्सी पीजियेगा
कौन सी, हाँ जी कौन सी !
रविदास गेट की पहलवान लस्सी’
या रामनगर की रबड़ी दार लस्सी,
या वो जो विदेशीयों को खूब भाती हैं, Blue लस्सी, 
सही सुना आपने ! Blueberry लस्सी, Apple banana chocolate लस्सी, या Pinapple लस्सी, 
सही सुना आपने नाम लेते जाई पचासों तरह की लस्सी बनाते हैं ये |
काफी भीड़ होती हैं यहाँ, आपको खड़ा हो के पीना पड़ सकता हैं सड़क पे, हाँ मगर Free WiFi देता हैं ये |


ठंडाई तो हम भूल ही गए, वैसे तो कई दुकाने हैं गदौलिया चौराहे पे,
पर मेरी खास चर्च के पीछे हैं, रंगीन पीजियेगा या सादी
नहीं समझे भोलेनाथ का प्रसाद भांग लेंगे या नहीं, 
नहीं, चलिए कोई बात नहीं |


मीठा बहोत हो गया ना,
चलिए चाट हाँ मशहूर बनारसी चाट खिलाए,
काशी चाट भंडार, दीना चाट भण्डार और केशरी चाट भण्डार |
मै दीना चाट भंडार पे खाना पसंद करता हूँ, नारियल बाजार में हैं ये चौक पुलिस स्टेसन के पीछे, क्या खाइएगा फुलकी(पानी पूरी), टमाटर चाट या दही बड़े |


अब चलिए ले चलता हूँ आपको जन्नत में, घबराई नहीं जान नहीं देनी होगी
ठठेरी बजार चलाना होगा बस, मेरे लिए यह जगह जन्नत से कम नहीं, जन्नत इसलिए की यहाँ जो चीज खाइए एक से बढकर एक, अमृत भी कह सकते हैं, ये गली स्वादों से भरी हैं |
सुबह लाया होता तो आपको, The राम भंडार प्रसिद्ध छोटी कचौरी, पूरी कचौरी खिलाया होता मजा आ जाता, इस वक्त आपको समोसा छोला मिल जाएगा |


चिंता ना करे अभी भी कोई कम आनंद नहीं आने वाला, वो दिख रहा हैं आपको जो सफ़ेद मकान से सटा के टेबल पे कुछ बेच रहा हैं, जानते वो मकान किसका हैं ! भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी का हिंदी के बहुत बड़े कवि थे, उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह भी कहा जाता हैं |


अब आइए इस दूकान पे, पलंग तोड़ रबडी कभी खाई हैं, Sandwich रबड़ी भी कहते है इसे, ये खाने के बाद कुछ अच्छा नहीं लगेगा, ये आखिर में खाएँगे |
थोड़ा आगे एक खास दुकान हैं, “श्री लक्ष्मी गोरस भंडार” दो तीन चीज़े ही बनाते हैं ये,
और रात नौ बजते बजते सब खतम भी हो जाती हैं |
मालई पूरी खाई है कभी, अरे मलाई पूरी से ही पेट भरेंगे क्या !
इनकी रबड़ी का जवाब नहीं हैं वो कौन खायेगा ? 
इस राबड़ी के लिए हम जान दे भी सकते हैं और ले भी सकते हैं |
कलाकंद भी हैं खा लिजिये ये स्वाद कही और ना मिलेगा |


ठंडी में आए होते तो मलइयो भी खिलाते आपको, ठंडी में ही मिलती हैं वो बस |


कहाँ कहाँ चल दिए जनाब ! एक स्वाद तो आप भूल ही गए,
बनारसी स्वाद अधूरा हैं इसके बिना
बनारसी पान कौन खायेगा ?आत्मा तृप्त न हो जाए तो बोलिए, चलिए मुह खोलिए |


चलिए अब चलते हैं, अब अगली बार मिलेंगे, किसी और शहर की गलियां, नुक्कड़ चौराहे छानेंगे |


: शशिप्रकाश सैनी 


पी.एस : मैंने जितना बनारस जिया, जितना बनारस चखा, बस वही साँझा कर पा रहा हूँ, अभी बनारस को जीने और चखने को बहुत कुछ बाकी हैं, आशा करता हूँ, बाबा विश्वनाथ मुझ पर कृपा बनाए रखेंगे | 


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Friday, August 2, 2013

Rufous Treepie (Birds in BHU)


The Rufous Treepie (Dendrocitta vagabunda) is a treepie, native to the Indian Subcontinent and adjoining parts of Southeast Asia.
It is a member of the Corvidae (crow) family. It is long tailed and has loud musical calls making it very conspicuous. It is found commonly in open scrub, agricultural areas, forests as well as urban gardens. Like other corvids it is very adaptable, omnivorous and opportunistic in feeding.