नव भाचित्रक
Tuesday, December 17, 2013
पनघट पे घट, गंगा का तट
पनघट पे घट, गंगा का तट
भरने बुँदे विश्वास की
गर मान सको तो अमृत हैं
प्यास अंतिम उच्छ्वास की
: शशिप्रकाश सैनी
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